जहाँ एक ओर झारखंड मे पदासीन शिबू सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार पेसा कानून के तहत पंचायत चुनाव कराने को कटिबद्ध दिख रही है वही, मात्र 27 %आदिवासी समुदाय की तुलना मे 73% सदानो यानि गैरआदिवासी की आबादी के प्रायः कद्दावर नेताओ ने किसी भी हालत मे पेसा कानून मे आवश्यक संशोधन किये वगैर पंचायत चुनाव नही होने देने की कडी चेतावनी दी है और निर्णायक आन्दोलन करने की दिशा मे गोलबन्द हो चले है.वेशक उग्रवाद का पर्याय बने झारखंड मे आदिवासी और गैरआदिवासी के बीच पेसा चुनाव के तहत पंचायत चुनाव एक ऐसी आपसी टकराव को जन्म देगी,जिसे पाटना आने वाले दिनों मे बहुत मुश्किल होगी.मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ग्रामीण परिवेश की आदिवासी राजनीति तो करते है,लेकिन उनका जनाधार गैरआदिवासी समुदाय खासकर महतो जाति मे कही अधिक झलकती है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें