भारत जैसे विश्व के सबसे लोकतान्त्रिक देश में अन्य राज्यों में आदिवासी समुदाय की हालत क्या है,यह एक गहन छानबीन का विषय हो सकतें हैं लेकिन झारखण्ड में सब कुछ उपरी सतह पर दिखता है.यहाँ आदिवासी समुदाय पूर्णतः तीन वर्गों में विभक्त हो गया है।
पहला वर्ग अलग राज्य गठन के बाद सत्तासुख भोग रहा है ।
दूसरा वर्ग वही पुराना दीन-हीन जीवन जीने को अभिशप्त हैं। तीसरा वर्ग ईसायत की चपेट में आकर एक ऐसा जीवन जीने लगा है जिसमें न तो झारखंडी संस्कृति बची है और न ही भारतीयता।सबसे पहले ईसायत की चपेट में प्रायः आदिवासी समुदाय की बालाएं आती है जो धीरे-धीरे पूरे परिवार-खानदान को अपनी रंग में रंग लेती है।
सच पूछिए तो इसाई मीशिनारियां ऎसी महत्वाकांक्षी बालाओं आर्थिक तौर पर इतनी मजबूत बना देती है कि उसका समूचा परिवार उसी पर निर्भर हो जाता है। अच्छे खासे रसूख वाले दूर-देहात के भोले -भाले आदिवासी युवक भी आधुनिक चकाचौंध में आकर आसानी से इनके गले बंध जाते हैं । मूल आदिवासी से बने इस नए इसाई वर्ग में एक नई प्रथा का जन्म हुआ है और वह प्रथा है शादी के पहले माँ बनने तक परस्पर यौन सम्बन्ध स्थापित करना।
चूकि इसाई मिशनरियों की मदद से ये बालाएं आत्मनिर्भर अपने परिवार से अलग-थलग रहने लगती है , इसलिए उसे सामाजिक तौर पर किसी भी युवक के साथ रहने में कोई परेशानी नही होती। अगर वह माँ बन जाती है तो बात शादी तक पहुँचती है अन्यथा चल चिरियां दूसरे घोंसले पर वाली कहावत चरितार्थ होने लगती है।एक सर्वेक्षण के अनुसार मुख्यतः सरकारी गैर सरकारी अस्पतालों,स्कूलों ,दफ्तरों आदि में कार्य करने वाली ऎसी बालाओं की तादात करीव ९८ फीसदी है। जिनमे शादी पूर्व एक से अधिक के साथ खुले यौन- सम्बन्ध स्थापित करना आम बात हो गई ही है।
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