बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घर-जिले नालंदा में आज एक चौंकाने वाली बात उभरकर सामने आई है. यहाँ पदास्थापित डी.एम. संजय कुमार अग्रवाल जो श्री कुमार के अत्यंत विश्वासपात्र प्रशासनिक आला अधिकारी माने जाते है.उनकी भी सारी गतिविधियाँ महज मीडीया की चौखट तक ही सीमित नज़र आती है और इस सन्दर्भ में विश्लेषक उन्हें “मीडीया मैनेजमेंट” के माहिर अधिकारी बताते है.
वहारहाल, आज नालंदा में डी.एम. श्री अग्रवाल ने “जनता दरबार” लगाई थी.यह दरबार जनसमस्याओं को लेकर कम और स्थानीय अखबारों में सुर्खियाँ पाने को लेकर अधिक चर्चित रहा है.यहाँ सबसे दुर्भाग्यजनक पहलू है कि अखबारों से जुड़े लोगों के लिए भी पत्रकारिता कोई व्यवसाय नहीं अपितु धंधा बन गया है.
कहते हैं कि जिले के हिलसा अनुमंडल के नगरनौसा प्रखंड-अंचल के रामपुर पंचायत अंतर्गत लोदीपुर गांव निवासी एक व्यक्ति ने जनता दरबार में डी.एम. संजय कुमार अग्रवाल से शिकायत करते हुये बताया कि एन.एच.३०(ए) अवस्थित बोधीबिघहा रामघाट से रामपुर पंचायत भवन तक प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क निर्माण योजना के तहत मार्ग-निर्माण में ठेकेदार ने रात्रिकाल में अपनी दवंगता दिखाते हुये उनकी रैयती जमीन के एक हिस्से को गढ्ढा कर दूसरे हिस्से को भर दिया.जबकि सरकारी तौर पर उसे इस सन्दर्भ में कोई आदेश-निर्देश नहीं दिया गया था.जिला प्रशासन के अधिकारिओं ने तब उक्त ठेकेदार की दबंगई को सही करार देते हुये शिकायतकर्ता के कुल १४ डीसमील जमीन पर जबरन कार्य करने की पुष्टि की थी और न्यायोचित कार्रवाई करने का भरोसा दिया था.लेकिन आज जब जनता दरबार में जिले के डी.एम. का लिखित ध्यान इस ओर दिलाया गया तो इस श्रीमानजी का जबाब समूचे शासन व्यवस्था को झकझोर कर रख देता है.शिकायतकर्ता को डी.एम.साहेब का कहना था कि कार्रवाई करना या जमीन का मुआबजा देना सरकार का काम है और वे सरकार नहीं हैं. इसके आगे डी.एम.अग्रवाल साहेब ने जो जबाब दिया उसे सुनने पर किसी का भी माथा ठनक जाएगा. इस साहब का कहना था कि वे अधिक से अधिक शिकायतकर्ता की जमीन वापस कर सकते हैं.
सच पूछिए तो नालंदा के डी.एम.संजय कुमार अग्रवाल ने जिस लहजे में शिकायतकर्ता की समस्या को सुलझाने/टरकाने का प्रयास किया.,उस तरह का अंदाज किसी आईपीएस अधिकारी से उम्मीद नहीं की जा सकती और न हीं शोभा ही देता है.यह तो एक चपरासी को भी मालूम होता है कि एक जिले में डी.एम. का पद तथा उसकी जबाबदेही किस तरह की होती है.
वहारहाल, आज नालंदा में डी.एम. श्री अग्रवाल ने “जनता दरबार” लगाई थी.यह दरबार जनसमस्याओं को लेकर कम और स्थानीय अखबारों में सुर्खियाँ पाने को लेकर अधिक चर्चित रहा है.यहाँ सबसे दुर्भाग्यजनक पहलू है कि अखबारों से जुड़े लोगों के लिए भी पत्रकारिता कोई व्यवसाय नहीं अपितु धंधा बन गया है.
कहते हैं कि जिले के हिलसा अनुमंडल के नगरनौसा प्रखंड-अंचल के रामपुर पंचायत अंतर्गत लोदीपुर गांव निवासी एक व्यक्ति ने जनता दरबार में डी.एम. संजय कुमार अग्रवाल से शिकायत करते हुये बताया कि एन.एच.३०(ए) अवस्थित बोधीबिघहा रामघाट से रामपुर पंचायत भवन तक प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क निर्माण योजना के तहत मार्ग-निर्माण में ठेकेदार ने रात्रिकाल में अपनी दवंगता दिखाते हुये उनकी रैयती जमीन के एक हिस्से को गढ्ढा कर दूसरे हिस्से को भर दिया.जबकि सरकारी तौर पर उसे इस सन्दर्भ में कोई आदेश-निर्देश नहीं दिया गया था.जिला प्रशासन के अधिकारिओं ने तब उक्त ठेकेदार की दबंगई को सही करार देते हुये शिकायतकर्ता के कुल १४ डीसमील जमीन पर जबरन कार्य करने की पुष्टि की थी और न्यायोचित कार्रवाई करने का भरोसा दिया था.लेकिन आज जब जनता दरबार में जिले के डी.एम. का लिखित ध्यान इस ओर दिलाया गया तो इस श्रीमानजी का जबाब समूचे शासन व्यवस्था को झकझोर कर रख देता है.शिकायतकर्ता को डी.एम.साहेब का कहना था कि कार्रवाई करना या जमीन का मुआबजा देना सरकार का काम है और वे सरकार नहीं हैं. इसके आगे डी.एम.अग्रवाल साहेब ने जो जबाब दिया उसे सुनने पर किसी का भी माथा ठनक जाएगा. इस साहब का कहना था कि वे अधिक से अधिक शिकायतकर्ता की जमीन वापस कर सकते हैं.
सच पूछिए तो नालंदा के डी.एम.संजय कुमार अग्रवाल ने जिस लहजे में शिकायतकर्ता की समस्या को सुलझाने/टरकाने का प्रयास किया.,उस तरह का अंदाज किसी आईपीएस अधिकारी से उम्मीद नहीं की जा सकती और न हीं शोभा ही देता है.यह तो एक चपरासी को भी मालूम होता है कि एक जिले में डी.एम. का पद तथा उसकी जबाबदेही किस तरह की होती है.
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