बिहार मे शिक्षको की बहाली संबधी प्रक्रिया के बारे मे सुप्रीम कोर्ट के कडे आदेश के बाद नीतीश सरकार के गले मे पहले से अट्की ह्ड्डी अब और कडी हो गई है,वही उनके शिक्षामंत्री हरिनारयण सिंह अब बुरी तरह फंसते नजर आ रहे है. देश की सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को यह आदेश दिया है कि वह करीव दो दशक से दर-दर की ठोकरे खा रहे कुल 34540 बेरोजगार प्रशिक्षित शिक्षको को 6 सप्ताह के भीतर नियुक्त कर सुचित करने का आदेश दिया है. कह्ते है कि नीतीश सरकार इस न्यायपूर्ण फैसले को लागु न करने के बहाने तलाश कर रही है. सरकार की मंशा है कि इसे किसी न किसी प्रकार के पेंच मे फंसा कर टाला जाय.इसके तत्काल दो कारण बताये जा रहे है. पहला तो यह कि नीतीश सरकार के कथित सुशासन काल मे बडे पैमाने पर नियुक्त किये गये बतौर पंचायत-प्रखंड-नगर-जिला स्तरीय शिक्षको की बहाली-प्रक्रिया मे जिस तरह की मनमानी बरती गई है, उससे काफी थू-थू होनी तय है.दूसरा यह कि उनके चहेते शिक्षा मंत्री हरिनारायण सिन्ह बुरी तरह फँसगे क्योकि उन्होने शिक्षको की पूर्व बहाली मे जिस तरह की गोरखधन्धे की है,उसकी सारी कलई खुल कर सामने आ जायेगी. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने के तुरंत बाद ही बिहार कि शिक्षा मंत्री ने कहा कि आदेशानुसार शिक्षको की बहाली करना संभव नही है. उन्होने कहा कि इस मामले मे वे अपने स्तर से सुप्रीम कोर्ट मे शपथ-पत्र दाखिल कर बहाली करने हेतु 6 महीने से उपर की समय-सीमा मांग करेगे.राजनीतिक विश्लेषक मानते है कि शिक्षा मंत्री ने ये पैतरे अपने काले कारनामे छिपाने के लिये रच रहे है. अगले साल बिहार मे आम विधानसभा चुनाव होने है. ऐसे मे मंत्री चाहते है कि किसी न किसी प्रकार से चुनाव आचार सन्हिता लागू होने तक मामले को क्यो न टाल दिया जाय. अब देखना है कि लूट-खसोंट मे आकंठ डूबे ये "सुशासन कुमार" ये "बागड बिल्ला" बचते है या फंसते है.ऐसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इनके जितने मधुर संबन्ध बताये जाते है, वे भी चाहेगे कि आने वाले चुनाव तक इस मामले को उभररने से रोका जाय न कि विरोधियो की मांग के अनुरूप मंत्रिमंडल के इस निकम्मे मंत्री को हटाकर अपनी छवि के अनुरूप मिसाल कायम की जाय.
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