रविवार, 27 सितंबर 2009

"झारखंड में दिखेगी विनाश की रेखा !!"

-मुकेश कुमार-
आजादी साठ साल बाद भी झारखंड की में विकास नसीब नहीं है । औधोगिक विकास के नाम पर यहाँ विनाश -लीला कहीं अधिक रची गई है। सुच पूछिये तो प्रचुर वन खनिज संपदा से सजी भगवान् बिरसा की इस पावन भूमि पर आज उग्रवाद,भ्रस्टाचार, भूखमरी,गरीवी, बेकारी आदि के जो कांटे बिखरे हैं ,वे दरअसल इन्ही विनाश लीला की देन है। इक तरह से केन्द्र व् राज्य की सरकारें यहाँ के लोगों को खानाबदोश समझ ली है।
इन दिनों भारत सरक मार्ग निर्माण प्राधिकरण ने रास्ट्रीय उच्च मार्ग -३३ के चौरीकरण का कार्य किया है । इसके लिए उसे निर्माण हेतू वर्तमान मार्ग से करीव दूगनी १०० फीट भूमि की आवश्यकता है। कहते हैं की लूट -खासोंत में आकंठ डूबे सम्बंधित विभागों ने १९३२ के सर्वे के आधार पर ही सीधी लाइन खींच उक्त रोड का नक्शा बना लिया है। यदि इस नक्शे के आधार पर रोड बनाई गई तो रांची (विकास) से प्रस्तावित बरही (हजारीबाग) तक का जन जीवन अस्त-व्यस्त हो जायेगी। लाखों लोग बेघर हो जायेंगे। लाखों की रोटी-रोजी छीन जायेगी। धनबाद झरिया कोयलांचल से लगे यह इलाका लगभग खंडहर नजर आयेगी. क्योंकि आज के ताजा स्थिति का अबलोकन किए बगैर बनाए गए इस 'टेबुल मैप' के अनुसार रोड के दोनों किनारे कही १०० फीट तो कही २००-३००-४०० फीट भूमि ऊल-जलूल तर्क देकर जबरन अधिग्रहण की जा रही है। इस तरह के मार्ग न तो कहीं बने हैं और न ही झारखण्ड जैसे जंगली-पठारी ईलाके में बनानी संभव है। जानकार बतातें हैं की इस नए सरकारी विनाश रेखा के बनने से जहाँ एक और प्राकृतिक सौन्दर्य ख़त्म हो जायेगी,लोग -बाग़ फ़िर से जंगली जीवन जीने को मजबूर हो जायेगें. इससे सबसे अधिक प्रभावित रांची जिले के इराबा,चकला,ओरमांझी चुत्तूपालू के लोग है. फिलहाल , करीव १४ साल पूर्व अलग हुए झारखण्ड प्रान्त के हालत अपने समकक्ष भाईयों (छतीसगढ़, उतराखंड) से काफ़ी भिन्न है। जहाँ वे राज्य दिन दुनी रात चौगनी तरक्की कर रही है वहीँ यह राज्य रसातल की ओर रही है।और इसके प्रति जबावदेह लोग सिर्फ़ समस्याओं की आग पर अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकने में मशगुल है .

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